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यूपी के किसानों पर दोहरी मार: DAP की किल्लत ने बढ़ाई मुश्किलें, NPK की बढ़ी कीमतें

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जौनपुर (यूपी): देशभर में किसानों की आय को दोगुना करने के दावे भले ही अख़बारों और मंचों की शान बने हुए हों, लेकिन ज़मीनी सच्चाई कुछ और ही तस्वीर बयां कर रही है। खेतों की हरियाली के पीछे जिन उर्वरकों का सीधा योगदान होता है, उनकी समय पर उपलब्धता ना हो पाना, बाजार पर नकली बीज-खाद माफिया का कब्जा और बढ़ती कीमतें आज किसान की सबसे बड़ी चिंता का कारण बन गई हैं।

DAP की किल्लत ने बढ़ाई मुश्किलें

जैसे-जैसे खरीफ का मौसम नज़दीक आता है, खेतों को ज़रूरत होती है भरपूर पोषक तत्वों की। लेकिन इस बार फिर डीएपी खाद (DAP Fertilizer) की भारी कमी जौनपुर के किसानों को परेशान कर रही है। सरकारी गोदामों और सहकारी समितियों पर इसकी आपूर्ति बमुश्किल मांग की तुलना में हो पा रही है। ऐसे में किसान NPK (नाइट्रोजन-फॉस्फोरस-पोटाश) को विकल्प के रूप में इस्तेमाल करते हैं। लेकिन अब NPK की भी कीमत बढ़ा दी गई है ।

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जानकारी के मुताबिक एनपीके खाद के बैग की क़ीमत में 50 रुपये की बढ़ोतरी की गई है। इस बढ़ोतरी के बाद एक बोरी NPK की कीमत 1350 रुपये हो गई है, जो अब DAP के बराबर पहुंच चुकी है। यानी अब किसान को डीएपी और एनपीके एक ही रेट में मिलेगी।

वहीं दूसरी तरफ़ जब किसान सहकारी समिति पर खाद लेने जाते हैं, तो अक्सर खाली हाथ लौटते हैं। ऐसे में मजबूरन उन्हें प्राइवेट दुकानों की ओर रुख करना पड़ता है, जहां न सिर्फ ज़्यादा दाम वसूले जाते हैं, बल्कि खाद की गुणवत्ता पर भी संदेह बना रहता है।

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ढैंचा बीज योजना भी अधर में

मिट्टी की उर्वरता बनाए रखने के लिए जैविक उपायों को बढ़ावा देने की सरकारी पहल भी अधर में लटकी हुई है । सरकार द्वारा जिले में खरीफ सीजन के लिए 1050 क्विंटल ढैंचा बीज के वितरण का लक्ष्य रखा गया था, लेकिन मूल्य विवाद के चलते आपूर्ति ही नहीं हो पाई। ऐसे में दूसरी कंपनी से बीज मंगाया गया, दूसरी कंपनी ने केवल 250 क्विंटल बीज ही भेजा । वह भी 140 रुपये प्रति किलो की नई कीमत पर, जो पहले 116 रुपये थी।

कागज़ी लक्ष्य व ज़मीनी हकीकत में फ़र्क

जिला कृषि अधिकारी विनय सिंह के अनुसार, जिले का खरीफ लक्ष्य 53,780 टन यूरिया का था, जबकि अब तक केवल 35,042 टन ही वितरित हो पाया है। इफको द्वारा सहकारी समितियों को आपूर्ति न किए जाने से हालात और भी गंभीर हो गए हैं।

क्या किसान को मिल पाएगा उसका हक?

जब सरकार किसानों की आय दोगुनी करने की बात करती है, तो उसकी पहली प्राथमिकता लागत को कम करना और संसाधनों की समय पर उपलब्धता होनी चाहिए। लेकिन यहां तो किसान हर मोर्चे पर खुद को अकेला पा रहा है । न खाद समय पर, न कीमत में राहत और न ही भरोसेमंद विकल्प। ऐसे में एक सवाल लाजिमी है: क्या नीतियां सिर्फ घोषणाओं तक सीमित रह जाएंगी, या वाकई अन्नदाता को उसका हक मिलेगा?

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