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हनुमानगढ़ जिले के किसानों की बेबसी: 2 सालों से अटका पड़ा है फसल खराबे का क्लेम, अब नहीं तो कब मिलेगा मुआवजा ?

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हनुमानगढ़: प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY) को शुरू करते वक्त सरकार का लक्ष्य साफ था की प्राकृतिक आपदाओं की मार झेल रहे किसानों को तुरंत आर्थिक सुरक्षा देना। लेकिन हनुमानगढ़ जिले के हजारों किसान आज भी इस योजना के सुस्ती की मार झेलने पर मजबूर हैं। फसल बर्बाद होने के बाद भी हजारों किसान बीमा क्लेम (Insurance Claim) का महीनों से इंतजार कर रहे है। जिसका मुख्य कारण सेटेलाइट आधारित आकलन (Satellite based assessment) की खामियां और अधिकारियों का चुप्पी साध लेना है … ये सभी मुद्दे एक सवाल खड़ा करते हैं, क्या Pradhan Mantri Fasal Bima Yojana वाकई किसानों के लिए बनी है?

2 साल से अटके हैं दावे, किसानों की बढ़ रही मुश्किलें

हनुमानगढ़ जिले के नोहर, भादरा और पल्लू क्षेत्र के किसानों की कहानी एक जैसी है। संदीप कस्वां जैसे छोटे किसान बताते हैं, “2024 के खरीफ सीजन का दावा आज तक नहीं मिला। पिछले दो साल से केवल ₹34 का भुगतान हुआ, जबकि नुकसान 20 हज़ार रुपए से अधिक था।” आंकड़े चौंकाने वाले हैं: खरीफ 2024 में 1.43 लाख किसानों के दावे अटके हैं, वहीं रबी 2023 के 1.38 लाख दावों में से 1.5 करोड़ रुपए अभी तक लंबित हैं।

सेटेलाइट नहीं, गिरदावरी से हो आकलन

किसानों का सबसे बड़ा आरोप है कि सेटेलाइट तकनीक (satellite technology) खेतों की वास्तविक स्थिति दिखाने में विफल है। नोहर के किसान पवन नैण कहते हैं, “सेटेलाइट उन खेतों को नहीं पकड़ पाती, जहां फसल आधी बर्बाद हुई हो। पटवारी और ग्रामसेवक को मौके पर जाकर गिरदावरी करनी चाहिए।” यह मांग सिर्फ हनुमानगढ़ नहीं, बल्कि पूरे राजस्थान के किसानों की है। विशेषज्ञ भी मानते हैं कि ग्राउंड रिपोर्ट के बिना बीमा आकलन अधूरा है।

प्रीमियम तुरंत काटो, दावे सालों बाद दो

मोहन लोहरा जैसे किसानों की शिकायत है, “फसल ऋण लेते ही प्रीमियम काट लिया जाता है, लेकिन दावा मिलने में सालों लग जाते हैं।” यह विडंबना साफ दिखती है रबी 2023 के आंकड़ों में, 124 करोड़ के दावों में से 122 करोड़ वितरित हुए, लेकिन 1.5 करोड़ अभी भी लटके हैं। किसान पूछते हैं “जब प्रीमियम समय पर काट सकते हैं, तो दावे क्यों नहीं? तो इसका जवाब देने वाला भी कोई नहीं मिलता। आख़िर किसान करे तो क्या करे।

किसानों के सुझाव पर गंभीर हो सरकार

अरडक़ी गांव के महेंद्र कुमार सुझाव देते हैं, “दावों का निपटारा फसल कटाई के 45 दिनों के भीतर हो। सेटेलाइट के साथ स्थानीय अधिकारियों की रिपोर्ट भी जोड़ी जाए।” एक कृषि अर्थशास्त्री के अनुसार, “इस योजना को पारदर्शी बनाने के लिए रियल-टाइम डैशबोर्ड लॉन्च किया जाना चाहिए, जहां किसान अपने दावे की स्थिति ट्रैक कर सकें।”

समय की मांग है त्वरित कार्रवाई

Pradhan Mantri Fasal Bima Yojana का उद्देश्य तभी सार्थक होगा, जब फसल खराब होने के 60 दिनों के भीतर किसानों के खातों में रकम पहुंचे। हनुमानगढ़ के किसानों का संघर्ष बताता है कि नीति और क्रियान्वयन के बीच का के समय को कम करना जरूरी है। राजस्थान सरकार को चाहिए कि वह गिरदावरी प्रक्रिया को प्राथमिकता दे और बीमा कंपनियों पर समयसीमा पूरा करने का दबाव बनाए। क्योंकि जब तक किसानों को उनका हक नहीं मिलता, तब तक “कृषि सुरक्षा” के दावे महज कागजी घोषणाएं ही रहेंगी।

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