Guar ki kheti – ग्वार (Cyamopsis tetragonoloba) जो की एक दलहनी फसल है। इसे Cluster Beans के नाम से भी जाना जाता है। ग्वार की खेती मुख्य रूप से भारत और पाकिस्तान के शुष्क एवं अर्ध-शुष्क इलाकों में की जाती है। ग्वार एक ऐसी फसल है जो कम खर्च में अधिक आमदनी देता है, इतना ही नहीं ग्वार की जड़ों में नाइट्रोजन स्थिरीकरण करने वाले जीवाणु पाए जाते हैं, जो की जमीन की खोई हुई ताकत को लौटकर उसे पहले से और अधिक उपजाऊ बनाने में सहायक है।
यदि आप भी ग्वार की खेती करने की सोच रहे है तो इस लेख को शुरू से लेकर लास्ट तक पूरा पढ़े! इस लेख में जानेगे की ग्वार की बिजाई कब और कैसे करें ? साथ ही ग्वार की उन्नत किस्में, खाद और जड़ गलन रोग से बचाव के उपाय पर भी चर्चा करेंगे।
ग्वार बिजाई का सही समय तरीका और खाद प्रबंधन
चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के सेवानिवृत्त ग्वार वैज्ञानिक, डॉ. बी.डी. यादव, जिन्होंने दशकों इस फसल पर शोध किया है, बताते हैं, “ग्वार खरीफ की वो मजबूत फसल है जो सूखे को चुनौती देती है। यह किसान के पसीने का सही मूल्य दिलाती है। कम पानी, कम निवेश, पर ज्यादा रिटर्न।” डॉ. यादव का जोर है कि जिन किसानों के पास नहर का पानी उपलब्ध है, वे जून में हल्की सिंचाई करके या फिर मानसून की पहली बरसात का फायदा उठाकर बिजाई करें। विशेषज्ञों की मानें तो जून का यह दूसरा पखवाड़ा ग्वार की बिजाई का सबसे उपयुक्त समय होता है ।
ग्वार की उन्नत किस्में
ग्वार की बिजाई के लिए उन्नत किस्मों को अपनाना बेहद जरूरी है। डॉ. यादव एचजी 365, एचजी 563 और खास तौर पर जल्दी बिजाई के लिए एचजी 2-20 किस्म की सिफारिश करते हैं।
- HG 2-20: जल्दी बिजाई करने वाली किस्म, 3 किलो बीज प्रति एकड़ पर्याप्त है ।
- HG 365: सामान्य अवधि की किस्म, 4 किलो बीज प्रति एकड़ की दर से बुआई करें ।
इनकी पंक्तियों के बीच की दूरी को भी सही से बना कर रखें। एचजी 365 लाइन से लाइन की दूरी 2 फीट और एचजी 2-20 लाइन से लाइन की दूरी 1.5 फीट रखें ताकि पौधों को भरपूर हवा, धूप और पोषण मिल सके।
खाद डालने का तरीका भी स्पष्ट है:
- प्रति एकड़ 100 किलो सुपर फॉस्फेट जरूर डालें।
- साथ में 15 किलो यूरिया या फिर 35 किलो डीएपी ड्रिल से डालें।
- अगर जमीन में जिंक की कमी दिखे, तो प्रति एकड़ 10 किलो जिंक सल्फेट भी बिजाई के वक्त डालें।
कैसे बचें जड़ गलन के प्रकोप से?
गवार की फसल का सबसे बड़ा दुश्मन है ‘जड़ गलन’ रोग। यह बीमारी पैदावार को 20% से लेकर 45% तक घटा सकती है, किसान की मेहनत पर पानी फेर सकती है। डॉ. यादव बताते हैं की , “इसकी रोकथाम बिजाई के पहले ही शुरू हो जाती है। बीजोपचार ही एकमात्र कारगर तरीका है।” उनकी सलाह है की इसके लिए किसान प्रति किलो बीज को 3 ग्राम कार्बेन्डाजिम 50% (बाविस्टीन) से सूखा उपचारित करें। यह छोटा सा उपाय 80% से 95% तक बीमारी पर काबू पाने में मददगार साबित होता है।
ग्वार: खेत की सेहत का वरदान
ग्वार की खूबी सिर्फ कमाई तक सीमित नहीं। डॉ. यादव गर्व से बताते हैं, “यह दलहनी फसल है, जो वायुमंडल से नाइट्रोजन लेकर जमीन को समृद्ध करती है। पकने पर इसके पत्ते झड़कर स्वाभाविक जैविक खाद बन जाते हैं।” यही वजह है कि ग्वार के बाद लगने वाली सरसों या गेहूं की फसल में 20-25% तक नाइट्रोजन की बचत होती है और पैदावार भी बेहतर होती है। ग्वार की खेती जमीन की उर्वरा शक्ति को नया जीवन देने का काम करती है।
किसान भाइयों के लिए अहम सुझाव
- जिन इलाकों में पहली बरसात हो चुकी है और बिजाई हो गई, वहां फसल पर नजर रखें।
- जिन्होंने अभी बिजाई नहीं की है, वे जल्दी करें। डॉ. यादव की सलाह है कि बची हुई बिजाई 10 जुलाई तक पूरी कर लेनी चाहिए।
- खरपतवार नियंत्रण में सावधानी: खड़ी फसल में चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों के लिए खरपतवारनाशक दवाओं का इस्तेमाल न करें। इससे ग्वार के पत्ते पीले पड़ सकते हैं, फसल की बढ़वार 15 से 20 दिन के लिए रुक सकती है, और आने वाली सरसों की फसल पर भी बुरा असर पड़ सकता है। निराई-गुड़ाई या यंत्रों से ही खरपतवार नियंत्रण करें।
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