राजस्थान । भारत अब आतंकवाद के खिलाफ केवल सीमा पर ही नहीं, बल्कि जल नीति के मोर्चे पर भी निर्णायक कदम उठाने की दिशा में तेजी के साथ आगे बढ़ रहा है। दशकों से पाकिस्तान को मिल रही पश्चिमी नदियों के पानी की आपूर्ति पर अब लगाम कसने की तैयारी शुरू हो चुकी है। भारत सरकार ने अब सिंधु जल संधि (Indus Water Treaty) को तोड़ने के बाद, पाकिस्तान की ओर बहने वाले पानी को मोड़ने की ठोस रणनीति पर काम तेज़ कर दिया है।
जलशक्ति मंत्रालय ने हाल ही में पश्चिमी नदियों – झेलम, चिनाब और सिंधु – से पाकिस्तान की निर्भरता को समाप्त करने हेतु एक अभूतपूर्व योजना को अमलीजामा पहनाने की दिशा में प्री-फिजिबिलिटी स्टडी शुरू की है। यह अध्ययन चिनाब, रावी, व्यास और सतलज को आपस में जोड़ने वाली एक मेगानहर परियोजना (Mega Canal Project) के लिए किया जा रहा है, जिससे जल संसाधन भारत के शुष्क राज्यों तक पहुंचे और पाकिस्तान की जल निर्भरता खत्म हो।
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राजस्थान तक पहुंचेगा चिनाब का पानी
सरकार की योजना है कि चिनाब नदी का पानी एक नई लिंक नहर प्रणाली के माध्यम से पंजाब के हरिके बैराज तक लाया जाएगा। इसके बाद मौजूदा सिंचाई प्रणाली के जरिए हरियाणा होते हुए राजस्थान की इंदिरा गांधी नहर तक पानी पहुंचाया जाएगा। इस नहर को लगभग 200 किलोमीटर लंबा बनाया जाएगा, जिसमें 12 सुरंगें भी प्रस्तावित हैं।
यह रणनीति ना केवल भारत के शुष्क इलाकों को राहत देगी, बल्कि पाकिस्तान को मिलने वाले पानी के स्रोत भी सीमित करेगी। जलशक्ति मंत्रालय ने साफ संकेत दिए हैं कि सिंधु नदी बेसिन से जुड़े प्रोजेक्ट्स को अब “Single Window System” के तहत तेज़ी से मंज़ूरी दी जाएगी।
यमुना और इंदिरा नहर को भी मिलेगा पोषण
योजना के विस्तार में यमुना नदी के पोषण का भी उल्लेख किया गया है। चिनाब से आने वाले अतिरिक्त पानी को उत्तर भारत की प्रमुख नहरों से जोड़ने की संभावना भी तलाशी जा रही है। इसके तहत पंजाब, हरियाणा और राजस्थान में पहले से मौजूद नहरों की क्षमता बढ़ाने, गाद हटाने और लीकेज रोकने के लिए कार्य प्रारंभ हो चुका है।
नहरी संरचना का गहराई से आकलन
जलशक्ति मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों की टीम जम्मू-कश्मीर, पंजाब, हरियाणा और राजस्थान के मौजूदा नहर नेटवर्क का व्यापक सर्वेक्षण कर रही है। यह देखा जा रहा है कि क्या वर्तमान संरचनाएं इस स्तर के जल प्रवाह को संभालने में सक्षम हैं या उन्हें पुनर्निर्मित करना होगा। इसके साथ ही, लागत का भी आकलन किया जा रहा है ताकि भविष्य की योजना को आर्थिक रूप से व्यवहार्य बनाया जा सके।
बांधों और परियोजनाओं में तेजी
झेलम नदी पर स्थित उरी बांध, चिनाब पर दुलहस्ती, सलाल और बगलीहार, और सिंधु पर नीमू बाजगो और चुटक बांधों से गाद हटाने और उनकी क्षमता बढ़ाने का कार्य तेज़ किया जाएगा। किशनगंगा, रतले, पाकल दुल और तुलबुल जैसी विवादित परियोजनाओं पर भी अब बिना विलंब के काम होगा।
तीन साल की समयसीमा
इस मेगाप्लान को तीन वर्षों में पूर्ण करने की योजना है, लेकिन सूत्रों की मानें तो सरकार इसे दो से ढाई वर्षों में ही पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध है। इसके लिए विभागों को स्पष्ट निर्देश दे दिए गए हैं कि विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (DPR) तैयार करते ही जमीन पर काम शुरू कर दिया जाए।
किसे मिलेगा लाभ?
इस जल नीति परिवर्तन से सर्वाधिक लाभ जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश को होगा, जहां जल संकट और कृषि सिंचाई की आवश्यकता निरंतर बनी रहती है।
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