Toxic farming: पंजाब, जिसे भारत का अनाज का कटोरा कहा जाता है, आज अपनी ही फसलों और भूजल में घुलते जहर से जूझ रहा है। PGI चंडीगढ़ की ताज़ा रिपोर्ट ने एक ऐसा सच उजागर किया है जो न सिर्फ चौंकाने वाला है, बल्कि हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिए खतरे की घंटी भी है। कीटनाशकों (Pesticides) का अंधाधुंध इस्तेमाल और भूजल में जहरीले तत्वों की बढ़ती मात्रा अब सिर्फ मिट्टी को नहीं, बल्कि मानव शरीर को भी दूषित कर रही है। आइए जानते है की पीजीआई चंडीगढ़ के सामुदायिक चिकित्सा विभाग की रिपोर्ट ने क्या खुलासे किए है ।
PGI की स्टडी ने क्या खोजा?
पीजीआई चंडीगढ़ के सामुदायिक चिकित्सा विभाग द्वारा 2015 से 2023 के बीच किए गए अध्ययन में चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, प्रदूषित इलाकों में हर 1,000 बच्चों के जन्म पर 20.6% आकस्मिक गर्भपात और 6.7% समय से पहले प्रसव की दर दर्ज की गई, जो राष्ट्रीय औसत से कहीं अधिक है। विभाग के प्रोफेसर डॉ. जेएस ठाकुर ने बताया कि यह समस्या सिर्फ खेतों तक सीमित नहीं है। कीटनाशकों के अवशेष अब सब्जियों, मानव रक्त, मां के दूध और यहां तक कि गाय-भैंस के दूध में भी पहुंच चुके हैं।
कैसे शरीर में घुल रहा है जहर?
अध्ययन में भूजल, सब्जियों और मानव शरीर में पाए गए खतरनाक तत्वों की लिस्ट चिंता बढ़ाने वाली है:
- भूजल: क्लोरपाइरीफोस, एंडोसल्फान, हेप्टाक्लोर के साथ सेलेनियम, लेड, कैडमियम और यूरेनियम जैसी भारी धातुएं।
- सब्जियां: जिंक, मैंगनीज और आर्सेनिक जैसे तत्वों की मात्रा सुरक्षित सीमा से अधिक।
- मानव शरीर: रक्त में डाइक्लोरोडाइफेनी, एल्ड्रिन, मोनोक्रोटोफॉस और मूत्र में मर्करी व आर्सेनिक की मौजूदगी।
डॉ. ठाकुर के मुताबिक, “ये रसायन बच्चों में दांतों की सड़न, बोलने में देरी और पेट संबंधी समस्याएं पैदा कर रहे हैं। गर्भवती महिलाओं के लिए तो यह और भी घातक है।”
कैंसर का बढ़ता साया
रिपोर्ट में पंजाब के अलग-अलग जिलों में कैंसर के पैटर्न पर भी रोशनी डाली गई है। एक जिले में स्तन और सर्वाइकल कैंसर के मामले अधिक हैं, तो दूसरे में ब्लड कैंसर, लिम्फोमा और बोन कैंसर का खतरा बढ़ा है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह भौगोलिक विविधता उस इलाके के भूजल और मिट्टी में मौजूद विशिष्ट रसायनों से जुड़ी है।
समाधान की उम्मीद: जैविक खेती और सरकारी पहल
इस संकट से निपटने के लिए अध्ययन में कुछ ठोस सुझाव दिए गए हैं:
- जैविक खेती को बढ़ावा: किसानों को कम कीटनाशक इस्तेमाल करने और जैविक तरीकों पर स्विच करने के लिए विशेष सब्सिडी दी जाए।
- कीटनाशकों पर निगरानी: फसलों में रसायनों के इस्तेमाल को ट्रैक करने के लिए राज्य स्तर पर डिजिटल सिस्टम बनाया जाए।
- फसल विविधीकरण: धान-गेहूं की मोनोक्रॉपिंग की बजाय दलहन और सब्जियों की खेती को प्रोत्साहित किया जाए।
डॉ. ठाकुर स्पष्ट करते हैं, “यह सिर्फ सरकार की नहीं, बल्कि हर नागरिक की जिम्मेदारी है। हमें अपने बच्चों के भविष्य के लिए अभी कदम उठाने होंगे।”
अंतिम सवाल: क्या हम वक्त रहते जागेंगे?
पंजाब की यह कहानी सिर्फ एक राज्य तक सीमित नहीं है। यह पूरे देश के लिए एक सबक है कि कैसे रासायनिक खेती की अंधी दौड़ हमारे स्वास्थ्य को निगल रही है। जैविक खेती और सतत कृषि पर शोध बताते हैं कि समाधान संभव है, लेकिन इसके लिए जनता और सरकार को मिलकर काम करना होगा। आखिरकार, स्वस्थ फसलें ही स्वस्थ समाज की नींव रख सकती हैं।