Rajasthan News- राजस्थान में सहकारी बैंकों (Co-operative Banks) पर संकट के बादल गहराते जा रहे हैं। साल 2018 और 2019 में की गई दो बड़ी किसान ऋण माफी योजनाएं इन बैंकों के लिए वित्तीय मुसीबत का कारण बनती जा रही हैं। इन योजनाओं के तहत सरकार ने तो किसानों के मूल ऋण की राशि चुका दी, लेकिन उस दौरान बने 765.57 करोड़ रुपये के ब्याज की देनदारी अब तक अधूरी है।
इन बकाया ब्याज राशियों ने प्रदेश के जिला केंद्रीय सहकारी बैंकों (CCB), राजस्थान राज्य सहकारी बैंक (Apex Bank), और अन्य प्राथमिक संस्थाओं की वित्तीय रीढ़ को झटका दिया है। जिन संस्थाओं पर किसानों की उम्मीदें टिकी रहती हैं, वे अब खुद कर्ज बांटने में असमर्थ होती जा रही हैं।
किसानों की राहत बनी बैंकों की परेशानी
जब 2018 और 2019 में राज्य सरकार ने दो चरणों में ऋण माफी की घोषणाएं की थीं, तब लाखों किसानों के चेहरों पर राहत की लकीरें थीं। सरकार ने करीब 15,000 करोड़ रुपये के मूल ऋण का भुगतान किया। लेकिन जिस ब्याज की रकम का भुगतान तय समय पर नहीं हुआ, वह सहकारी संस्थाओं के सिर पर बोझ बनकर बैठ गया।
कर्ज माफी की घोषणाएं अपने आप में ऐतिहासिक थीं, लेकिन इन्हें लागू करने में जो वित्तीय लापरवाही हुई, उसने सहकारी बैंकिंग ढांचे को अंदर से कमजोर कर दिया। आज स्थिति यह है कि अगर समय पर सरकार ने हस्तक्षेप नहीं किया, तो कई संस्थाएं कार्यशील पूंजी के अभाव में किसानों को ऋण देना तक बंद कर सकती हैं।
आंकड़े जो स्थिति की गंभीरता बताते हैं
अगर वर्षवार देखें तो 2019-20 से लेकर 2024-25 तक का बकाया ब्याज कुछ यूं जमा हुआ:
- 2019-20: ₹64.91 करोड़
- 2020-21: ₹274.90 करोड़
- 2021-22: ₹262.62 करोड़
- 2022-23: ₹113.49 करोड़
- 2023-24: ₹41.30 करोड़
- 2024-25 (अब तक): ₹8.34 करोड़
इस तरह कुल देनदारी ₹765.57 करोड़ तक पहुंच चुकी है, जिसमें से अकेले ₹200 करोड़ केवल अपेक्स बैंक को मिलने हैं।
समाधान क्या हो?
राज्य सरकार को अब स्थिति की गंभीरता को समझते हुए ठोस और समयबद्ध कदम उठाने होंगे। विशेषज्ञों और बैंक अधिकारियों का कहना है कि:
- सरकार को वित्तीय वर्ष 2024-25 की अंतिम तिमाही तक पूरी बकाया ब्याज राशि का भुगतान कर देना चाहिए।
- ऋण माफी योजनाओं के लिए एक स्थायी व समेकित नीति बनाई जानी चाहिए, ताकि भविष्य में ऐसी स्थिति दोबारा उत्पन्न न हो।
- कमजोर सहकारी बैंकों को सहारा देने के लिए सरकार को कम से कम 2000 करोड़ रुपये की पूंजी सहायता भी उपलब्ध करानी चाहिए।
किसान, बैंक और सरकार – तीनों को ही नुकसान
यह संकट केवल बैंकों तक सीमित नहीं है। जब बैंकों के पास पूंजी नहीं होगी, तो किसानों को समय पर फसली ऋण नहीं मिलेगा। और जब किसान ऋण से वंचित होंगे, तो उनकी खेती, उत्पादन और रोज़मर्रा की जिंदगी प्रभावित होगी। यह एक सिस्टमेटिक क्राइसिस है, जिसे नज़रअंदाज़ करना आने वाले चुनावी सालों में सरकार को भारी पड़ सकता है।
सहकारिता के इस ताने-बाने में अगर समय रहते समाधान का रास्ता नहीं निकालती है, तो राजस्थान की ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर दीर्घकालिक प्रभाव देखने को मिल सकता है।
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