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पानी बना कूटनीति का हथियार: भारत अब अफगानिस्तान से भी रोकेगा पाकिस्तान का पानी!

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India Afghanistan Shahtoot Dam: भारत ने अफगानिस्तान की तालिबान सरकार से सीधे संवाद की जो पहल शुरू की है, उसने इस पूरे क्षेत्र की राजनीति को एक नई दिशा दे दी है। 15 मई 2025 को भारत के विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर और अफगान विदेश मंत्री के बीच हुई ऐतिहासिक बातचीत ने पाकिस्तान को गहरी चिंता में डाल दिया है। यह संवाद सिर्फ एक राजनीतिक पहल नहीं, बल्कि एक रणनीतिक चाल है—जिसमें ‘पानी’ को कूटनीतिक हथियार की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है।

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शहतूत डैम पर तेज़ी से आगे बढ़ रहा है भारत

अफगानिस्तान की राजधानी काबुल में बनने वाला शहतूत डैम अब भारत की प्राथमिकताओं में शामिल हो चुका है। 236 मिलियन डॉलर की लागत से बनने वाला यह डैम करीब 2 मिलियन लोगों को पीने का पानी और 4,000 हेक्टेयर ज़मीन को सिंचाई की सुविधा देगा। भारत और अफगानिस्तान के बीच इस प्रोजेक्ट को लेकर 2021 में MoU साइन हो चुका है। अब जब इस पर फिर से काम तेज़ हो रहा है, तो पाकिस्तान की बेचैनी बढ़ना स्वाभाविक है।

यह डैम काबुल नदी पर बन रहा है, जो हिंदू कुश पहाड़ियों से निकलकर पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा प्रांत में प्रवेश करती है। पाकिस्तान के लिए यह नदी जल जीवनरेखा जैसी है। लेकिन अगर अफगानिस्तान इस पर बांध बनाता है, तो नीचे की ओर पानी का प्रवाह कम हो सकता है—और यही पाकिस्तान की सबसे बड़ी चिंता है।

कुनार नदी पर नया बांध: पाकिस्तान की मुश्किलें और गहरी

शहतूत डैम के साथ-साथ तालिबान सरकार ने अब कुनार नदी पर भी एक नया हाईड्रोपावर प्रोजेक्ट शुरू करने की घोषणा कर दी है। यह नदी भी हिंदू कुश से निकलती है और आगे चलकर काबुल नदी में मिलती है, जिससे पाकिस्तान का बड़ा इलाका सिंचित होता है। चूंकि अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच किसी भी नदी पर जल समझौता नहीं है, ऐसे में इन प्रोजेक्ट्स से तनाव और बढ़ सकता है।

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भारत की रणनीति: ‘पानी’ से पाकिस्तान को घेरने की तैयारी?

भारत ने हाल ही में पहलगाम आतंकी हमले के बाद सिंधु जल संधि को सस्पेंड कर दिया था। इसके तुरंत बाद भारतीय अधिकारियों की एक टीम काबुल पहुंची और तालिबान से शहतूत डैम समेत अन्य प्रोजेक्ट्स को तेज़ करने की बात हुई। भारत का यह कदम सिर्फ विकास सहयोग नहीं है—बल्कि यह पाकिस्तान को क्षेत्रीय और कूटनीतिक मोर्चे पर अकेला करने की रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है।

तालिबान ने भी पहलगाम हमले की निंदा की है, जिससे संकेत मिलते हैं कि अफगान सरकार भारत के साथ साझेदारी को प्राथमिकता दे रही है। यह वही तालिबान है, जिसे लेकर कभी भारत सतर्क था। लेकिन अब परिस्थितियां बदल चुकी हैं।

पाकिस्तान का संकट और भारत का कूटनीतिक मास्टरस्ट्रोक

अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच कुल 9 नदियों का जलविभाजन है—काबुल, कुनार, गोमल, कुर्रम, पिशिन-लोरा, कंधार-कंद, अब्दुल वहाब स्ट्रीम, कडानई और काइज़र। इनमें से अधिकांश पाकिस्तान के बलूचिस्तान और खैबर क्षेत्रों में खेती और पीने के पानी का प्रमुख स्रोत हैं।

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अब जब तालिबान इन नदियों पर बांध बना रहा है और भारत इसमें भागीदार है, तो यह पाकिस्तान की जल सुरक्षा के लिए एक गंभीर चुनौती बन गई है। पाकिस्तान पहले ही अफगान शरणार्थियों को वापस भेजने, बॉर्डर बंद करने और व्यापार में रोक लगाने जैसे कदम उठा चुका है—जिससे दोनों देशों के संबंध और तल्ख़ हुए हैं।

नया दक्षिण एशिया: जहां दोस्तियां बदल रही हैं और नदियां निर्णायक बन रही हैं

भारत और तालिबान के बीच इस नई नज़दीकी ने एक नया दक्षिण एशियाई परिदृश्य तैयार कर दिया है। पानी अब केवल जीवन नहीं, बल्कि भू-राजनीति का हिस्सा बन चुका है। और इस बार भारत ने बड़ी चुपचाप, लेकिन बेहद असरदार तरीके से ‘पानी’ को अपने पक्ष में कर लिया है।

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