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Punjab-Haryana Water Dispute: एक बूंद नहीं देंगे पानी, हरियाणा ने मांगी केंद्र की मदद, जानिए! दशकों पुराने जल विवाद के बारे में

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Punjab-Haryana Water Dispute: जल एक अमूल्य संसाधन है, लेकिन जब इसका बंटवारा राज्यों के बीच हो, तो यह राजनीति का सबसे संवेदनशील मुद्दा बन जाता है। पंजाब सरकार ने हाल ही में हरियाणा को मिलने वाली पानी की आपूर्ति 9500 क्यूसेक से घटाकर 4000 क्यूसेक कर दी है। मुख्यमंत्री भगवंत मान ने इस फैसले का बचाव करते हुए साफ कहा, “पंजाब के पास अब देने के लिए एक बूंद भी अतिरिक्त पानी नहीं है।”

मुख्यमंत्री मान ने कहा कि जल वितरण की गणना हर साल 21 मई से होती है और इस वर्ष हरियाणा को आवंटित पानी पहले ही दिया जा चुका है। उन्होंने राज्य में प्रमुख बांधों की गिरती जलस्तर की ओर इशारा करते हुए कहा कि रंजीत सागर डैम पिछले साल की तुलना में 39 फीट और पोंग डैम 24 फीट नीचे है।

हरियाणा का पलटवार, केंद्र की शरण में

दूसरी ओर, हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने इस कदम को “भ्रामक और एकतरफा” बताते हुए पंजाब पर पुराने जल समझौतों के उल्लंघन का आरोप लगाया है। हरियाणा की सिंचाई मंत्री श्रुति चौधरी ने केंद्रीय जल शक्ति मंत्री से मुलाकात कर केंद्र सरकार से हस्तक्षेप की मांग की है। उनका कहना है कि इस कटौती से हिसार, फतेहाबाद, सिरसा, रोहतक और महेन्द्रगढ़ जैसे जिलों में पीने के पानी और सिंचाई पर गंभीर असर पड़ेगा।

एक लंबा इतिहास, अधूरी नहर

पानी को लेकर पंजाब और हरियाणा का यह टकराव नया नहीं है। 1966 में हरियाणा के गठन के बाद से ही सतलुज-यमुना लिंक (SYL) नहर को लेकर विवाद बना हुआ है। 1981 में पंजाब, हरियाणा और राजस्थान के बीच जल बंटवारे को लेकर एक समझौता हुआ था, जिसमें हरियाणा को 3.5 मिलियन एकड़ फीट (MAF) पानी मिलना तय हुआ।

1982 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने पंजाब के कपूरथला में इस नहर की आधारशिला रखी थी। नहर की कुल लंबाई 214 किलोमीटर तय हुई थी, जिसमें से 122 किमी पंजाब और 92 किमी हरियाणा में बननी थी।

लेकिन पंजाब में इस पर विरोध शुरू हो गया। अकाली दल के नेतृत्व में ‘कपूरथला मोर्चा’ चला और धीरे-धीरे मामला उग्र होता गया। आतंकवाद के दौर में 1990 में नहर निर्माण में लगे इंजीनियरों की हत्या और मजदूरों पर हमलों के बाद निर्माण पूरी तरह रुक गया।

SC के फैसले के बावजूद नहीं बनी SYL

2002 में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि SYL नहर का निर्माण एक साल में पूरा हो। लेकिन पंजाब ने इसे मानने से इनकार कर दिया। इसके बाद 2004 में पंजाब विधानसभा ने ‘पंजाब एग्रीमेंट्स टर्मिनेशन एक्ट’ पारित कर सभी जल समझौतों को समाप्त कर दिया।

2016 में सुप्रीम कोर्ट ने इस कानून को “अवैध” घोषित किया, लेकिन पंजाब का रुख नहीं बदला। 2017 में कोर्ट ने दोबारा कहा कि SYL का निर्माण हर हाल में होना चाहिए, लेकिन अब तक जमीन लौटाने और निर्माण रोके जाने की स्थिति बनी हुई है।

पंजाब का अपना संकट

पंजाब खुद भी जल संकट से जूझ रहा है। ट्यूबवेल पर निर्भरता ने भूजल स्तर को खतरनाक रूप से गिरा दिया है। ऐसे में सरकार ने करीब 4000 करोड़ रुपये खर्च कर 79 पुरानी नहरों और 1600 किमी जल मार्गों को फिर से जीवित किया है। ट्रिब्यून की रिपोर्ट के अनुसार, पंजाब में नहरों के उपयोग में 12-13% की बढ़ोतरी दर्ज की गई है।

राजनीति या पानी की पीड़ा?

हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने केंद्र सरकार को आड़े हाथों लेते हुए आरोप लगाया कि वह SYL मुद्दे पर हरियाणा के हितों की रक्षा नहीं कर पा रही है। उन्होंने सर्वदलीय बैठक और विधानसभा का विशेष सत्र बुलाने की मांग की है।

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