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Wheat Residue Burning: गेहूं फसल अवशेष जलाने पर लगेगा ₹30 हज़ार तक का जुर्माना

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Wheat Residue Burning: क्या आपने कभी सोचा है कि खेतों से फसलों की कटाई के बाद फसल अवशेष (Crop Residue) को जलाने से उठने वाला धुआं सिर्फ हवा को ही प्रदूषित नहीं करता, बल्कि हमारी सेहत, जमीन और आने वाली पीढ़ियों के भविष्य को भी खतरे में डालता है? गेहूं की कटाई के बाद फसल अवशेष जलाना एक परंपरा सी बन चुकी है, लेकिन अब हरियाणा सरकार ने इस पर लगाम लगाने की ठान ली है। सरकार ने गेहूं की कटाई के बाद अवशेष जलाने वाले किसानों (Farmers) पर अब 30 हज़ार रुपये तक का जुर्माना (Fine) लगाने का फ़ैसला लिया है । लेकिन सवाल यह है: की क्या सिर्फ जुर्माना ही समाधान है, या किसानों को विकल्प भी मिल रहे हैं? आइए, विस्तार से समझते हैं।

क्यों चिंतित है हरियाणा सरकार?

करनाल कृषि विभाग के उपनिदेशक डॉ. वजीर सिंह के मुताबिक, इस साल ‘मेरी फसल, मेरा ब्योरा’ पोर्टल पर 4.05 लाख एकड़ में गेहूं की खेती दर्ज की गई है। लेकिन कटाई के बाद बचे अवशेषों को जलाने से न सिर्फ हवा ज़हरीली होती है, बल्कि मिट्टी की उर्वरा शक्ति भी घटती है।

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) की एक रिपोर्ट के अनुसार, फसल अवशेष जलाने से मिट्टी में मौजूद 25% नाइट्रोजन और 50% फॉस्फोरस नष्ट हो जाते हैं। साथ ही, धुएं से सड़क दुर्घटनाओं का खतरा बढ़ जाता है, जैसा कि पिछले साल यमुनानगर में हुए एक बड़े हादसे में देखा गया था।

गांव-गांव निगरानी की तैयारी

सरकार ने इस बार सख्ती और जागरूकता दोनों पर फोकस किया है। करनाल में 70 विशेष टीमें गठित की गई हैं, जो गांव-गांव जाकर किसानों को फसल अवशेष प्रबंधन के आधुनिक तरीके समझाएंगी। इनमें हैप्पी सीडर मशीनों का उपयोग, अवशेषों को कंपोस्ट में बदलना, या बायोमास ऊर्जा के लिए बेचना शामिल है। डॉ. सिंह ने स्पष्ट किया कि “अगर कोई किसान इन विकल्पों को न अपनाकर गेहूं फसल का अवशेष (wheat crop residue) जलाएगा, तो उस पर पर्यावरण संरक्षण अधिनियम के तहत कार्रवाई की जाएगी।”

किसानों के लिए चुनौती या मौका?

फसल अवशेष जलाना कोई मजबूरी नहीं, बल्कि एक पुरानी आदत है जिसे बदला जा सकता है। कृषि विशेषज्ञ डॉ. राजेश्वरी सिंह , जो हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय से जुड़ी हैं, कहती हैं की “अवशेष जलाने से मिट्टी के माइक्रोऑर्गेनिज्म मर जाते हैं, जो लंबे समय में उपज घटाते हैं। हैप्पी सीडर जैसी तकनीकें न सिर्फ पर्यावरण बचाती हैं, बल्कि डीजल और मेहनत की लागत भी कम करती हैं।” सरकार की ओर से ऐसी मशीनों पर 50% सब्सिडी दी जा रही है, जिसकी जानकारी कृषि विभाग की वेबसाइट पर उपलब्ध है।

हरियाणा सरकार का यह कदम निश्चित रूप से सराहनीय है, लेकिन सफलता तभी मिलेगी जब किसानों को जागरूक करने के साथ-साथ तकनीकी और वित्तीय मदद भी दी जाए। अगर आप या आपके परिवार में कोई किसान है, तो उन्हें ‘मेरी फसल, मेरा ब्योरा’ पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन कराने और सब्सिडी योजनाओं का लाभ उठाने के लिए प्रेरित करें। याद रखिए, स्वच्छ हवा और उपजाऊ मिट्टी हमारी आने वाली पीढ़ियों की विरासत है—इसे जलाने के बजाय बचाना ही समझदारी है।

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