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गेहूं की सरकारी खरीद 297.80 लाख टन के पार, 332 लाख टन का लक्ष्य पाना मुश्किल

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नई दिल्ली। गेहूं की सरकारी खरीद (Wheat procurement) चालू रबी मार्केटिंग सीजन (2025-26) अपने अंतिम चरण में है, लेकिन हालात बता रहे हैं कि इस बार सरकारी लक्ष्य तक पहुंचना शायद मुमकिन न हो। केंद्र सरकार ने जहां 332.70 लाख टन गेहूं खरीदने का लक्ष्य तय किया था, वहीं 25 मई तक की उपलब्ध जानकारी के अनुसार महज़ 297.80 लाख टन ही खरीद पाई है। अब बमुश्किल एक महीना बचा है और उत्तर प्रदेश व राजस्थान जैसे बड़े राज्यों में सरकारी खरीद की रफ्तार लगभग थम सी गई है।

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सरकारी खरीद केंद्रों पर वीरानी है। खेतों से अनाज मंडियों की ओर जा चुका है, लेकिन सरकारी एजेंसियां अब भी इंतज़ार कर रही हैं। किसानों के पास बिकाऊ माल ज़रूर है, लेकिन वे MSP छोड़कर खुले बाजार में बेचना पसंद का रहे हैं—क्योंकि मंडियों में भाव अब तेज हो रहे हैं।

बाजार का रुख क्यों बदला?
दरअसल, बीते कुछ हफ्तों में मंडियों में गेहूं के दाम में फिर से उछाल देखने को मिल रहा है। इससे किसान अब सरकारी केंद्रों की जगह प्राइवेट ट्रेडर्स को बेचना ज्यादा फायदेमंद समझ रहे हैं।

कुछ राज्यों ने दिखाया दम, कुछ रह गए पीछे
राजस्थान और मध्य प्रदेश—इन दोनों राज्यों ने एक बार फिर साबित किया कि अगर नीति में प्रोत्साहन हो, तो खरीद भी बेहतर हो सकती है।
सरकार ने गेहूं गेहूँ का न्यूनतम समर्थन मूल्य 2425 रुपए प्रति क्विंटल निर्धारित किया था। मध्य प्रदेश में किसानों को MSP से ऊपर 175 रुपये/क्विंटल का बोनस दिया गया, वहीं राजस्थान में यह बोनस 150 रुपये रहा। इसका असर दिखा—MP में लक्ष्य से अधिक गेहूं आया।
लेकिन पंजाब और हरियाणा में आंकड़े लक्ष्य से थोड़ा पीछे ही रहे:

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  • पंजाब: लक्ष्य 124 लाख टन, खरीद 119.30 लाख टन
  • हरियाणा: लक्ष्य 75 लाख टन, खरीद 71.40 लाख टन

अब जबकि खरीद सीजन 30 जून को समाप्त हो जाएगा, इन राज्यों से अतिरिक्त गेहूं आने की उम्मीद बहुत कम है।

उत्पादन में बढ़ोतरी का अनुमान
कृषि मंत्रालय के दूसरे अग्रिम अनुमान ने इस साल गेहूं उत्पादन को 1154.30 लाख टन बताया था। लेकिन अब तीसरे अनुमान में इसे बढ़ाकर 1170 लाख टन किए जाने की संभावना है। USDA ने भी भारत में इतने ही उत्पादन की उम्मीद जताई है।

लेकिन सवाल वही है — किसान बेचेगा किसे?
जब सरकारी केंद्र पर समय पर भुगतान नहीं, बोनस नहीं, और कीमतें भी नीचे हैं — तो किसान क्यों न मंडी का रुख करे? यही हो भी रहा है। यही वजह है कि भले ही रिकॉर्ड उत्पादन हो, लेकिन सरकारी खरीद उस रफ्तार से नहीं हो रही जो होनी चाहिए।

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